Tuesday, August 20, 2019

सिक्किम: बीजेपी ने जीता शून्य हो गए 10, कैसे

सिक्किम में बीजेपी का एक भी विधायक नहीं था और अब वो राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई है.
कई लोग इसके लिए बीजेपी के महासचिव और बीजेपी के पूर्वोत्तर राज्यों के प्रभारी राममाधव को श्रेय दे रहे हैं.
सिक्किम में 25 सालों तक शासन करने वाली सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ़) के 10 विधायक रातोरात पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए.
बीते अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक सीट भी नहीं जीत पाई थी. उसे महज 1.62 प्रतिशत वोट मिले थे.
इस चुनाव में सिक्किम क्रां
एसडीएफ़ में अब इसके मुखिया पवन चामलिंग और दो अन्य विधायक रह गए हैं. चामलिंग राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं.
साल 2016 में पूर्वोत्तर में कांग्रेस विरोधी गठबंधन बनाने के बीजेपी की कोशिशों में चामलिंग प्रमुख सहयोगी थे.
लेकिन हालिया विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ गठबंधन बनाने के प्रस्ताव को उन्होंने ख़ारिज़ कर दिया था.
बीजेपी महासचिव राम माधव ने कहा है कि पार्टी में शामिल होने वाले विधायकों पर दल बदल विरोधी क़ानून लागू नहीं होगा क्योंकि दो तिहाई से अधिक विधायकों ने पार्टी छोड़ा है.
तिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने 17 सीटें हासिल करते हुए एसडीएफ़ को हराया था.
सिक्किम में विधायकों का इस तरह दल बदल करना कोई नई बात नहीं है. पिछले चार साल में ये दूसरी बार है जब बड़ी संख्या में विधायकों ने दल बदल किया.
साल 2015 में एसकेएम के सात विधायक बग़ावत कर तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी एसडीएफ़ में शामिल हो गए थे.
उस समय भी इतने बड़े पैमाने पर दलबदल की काफ़ी आलोचना हुई थी लेकिन इस बार एसडीएफ़ से बीजेपी में गए विधायकों की सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना हो रही है क्योंकि 2019 विधानसभा चुनावों में जनता ने बीजेपी को पूरी तरह से नकार दिया था.
सिक्किम के स्थानीय पार्टियों का राष्ट्रीय पार्टियों के साथ जाने का सिलसिला बहुत पुराना है.
जब सिक्किम का भारत में विलय हुआ तो राज्य के पहले मुख्यमंत्री काज़ी लेंडुप दोरजी अपनी पार्टी सिक्किम नेशनल कांग्रेस का पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया.
साल 1977 में जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उनकी पार्टी ने फिर पाला बदला और जनता पार्टी के साथ हो गई.
जब से एसडीएफ़ 1994 में सत्ता में आई तब से राष्ट्रीय पार्टियों की राज्य की राजनीति में अहमियत ख़त्म हो गई थी.
पवन कुमार चामलिंग के उभार से पहले, सिक्किम जनता परिषद (एसजेपी) का 1979 से 1994 तक शासन था और इस दरम्यान भी राज्य ने काफ़ी दलबदल और विलय देखे.
साल 1979 में करिश्माई नेता नार बहादुर भंडारी के नेतृत्व में एसजेपी ने 32 सदस्यीय विधानसभा में 16 सीटें हासिल की थीं. एक निर्दलीय एमएलए के समर्थन से एसजेपी सरकार बनाने में सफल हुई.
उस समय केंद्र में कांग्रेस की मज़बूत सरकार थी. भंडारी ने एसजेपी का कांग्रेस में विलय कर दिया और विलय के साथ ही सिक्किम को एक कांग्रेसी सरकार मिली.
उस समय सदन में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं था और दलबदल और विलय के मार्फत उसके सदस्यों की संख्या 26 तक पहुंच गई थी. उस समय कुछ विधायक तो तीन पार्टियों से होते हुए सत्ता में पहुंचे.
साल 2014 के बाद से ही बीजेपी देश की सबसे ताक़तवर पार्टी के रूप में उभरी है और काफ़ी पहले से ऐसी चर्चा थी कि एसडीएफ़ के एमएलए बीजेपी में जा सकते हैं.
इस साल 14 मई एसकेएम ने राज्य में अपनी सरकार बनाई तभी से ये चर्चा ज़ोर पकड़ने लगी थी.