Friday, August 31, 2018

कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ पुणे कोर्ट में पुलिस ने क्या दलीलें दीं

पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच के सिलसिले में देश के अलग-अलग हिस्सों से मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार किया है. कुछ को हिरासत में लिया गया तो कुछ के घरों पर छापे मारे गए.
पुणे पुलिस की इस कार्रवाई की आलोचना भी हो रही है, लेकिन पुलिस ने अदालत में इन गिरफ़्तारियों को सही ठहराते हुई कई दलीलें पेश कीं.
फ़िलहाल पुणे की एक अदालत ने गिरफ़्तार किए गए लोगों में से तीन को घर में नज़रबंद करने का आदेश दिया है. वहीं सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा को भी नज़रबंद रखने का आदेश दिया गया है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को न्यायिक या पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पुणे सेशंस कोर्ट के एडिशनल जज केडी वंदाने ने बुधवार शाम को वरवर राव, अरुण फ़रेरा और वरनॉन गोंज़ाल्विस को नज़रबंदी में रहने का आदेश दिया.
अदालत में पुणे पुलिस का पक्ष रखने वाली स्पेशल पब्लिक प्रोसीक्यूटर (सरकारी वकील) उज्ज्वला पवार ने कहा कि 'तीनों अभियुक्त (वरवर राव, अरुण फ़रेरा और वरनॉन गोंज़ाल्विस) प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं और उन्हें हिरासत में रखा जाना ज़रूरी है क्योंकि उनके तार पुणे में 31 दिसंबर, 2017 को यलगार परिषद की आड़ में साज़िश रचने से जुड़े हुए हैं.'
वहीं, पुणे पुलिस ने दावा किया कि इसी मामले में जून में हुई गिरफ़्तारियों के दौरान उन्हें कुछ चिट्ठियां और काग़जात मिले थे जिनमें वरवर राव, अरुण फ़रेरा और वरनॉन गोंज़ाल्विस के नामों का ज़िक्र किया गया था.
पुलिस का कहना था कि पांचों कार्यकर्ताओं की बैठक ने भीमा-कोरेगांव में हुई जातिगत हिंसा को भड़काया. हालांकि मंगलवार को गिरफ़्तार किए गए लोगों के बीच किसी भी तरह की चिट्ठी का आदान-प्रदान नहीं हुआ.
सरकारी वकील उज्ज्वला पवार के मुताबिक जून में सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, महेश राउत और सुधीर धावले के यहां छापों के दौरान कुछ चिट्ठियां मिली थीं जिनमें वरवर राव, अरुण फ़रेरा और वरनॉन गोंज़ाल्विस के नाम थे.
उज्ज्वला पवार ने कहा, "वरवर राव अतिवादी संस्थाओँ के लिए नेपाल और मणिपुर से हथियार खरीदने के लिए ज़िम्मेदार हैं. वहीं फ़रेरा और गोंज़ाल्विस छात्र संस्थाओं पर नज़र रखते थे, उन्हें रिक्रूट करते थे और नक्सली इलाकों में ट्रेनिंग के लिए भेजते थे."
पवार ने कहा, "ये लोग ऑल इंडिया यूनाइटेड फ़्रंट नाम की संस्था बना रहे हैं जिसे ये एंटी फ़ांसिस्ट फ़्रंट कह रहे हैं. ये किसी माओवादी संस्था के फ़्रंट की तरह काम करेगी. यलगार परिषद जैसे सुधीर धावले द्वारा आयोजित क्रार्यक्रम इसी कोशिश का हिस्सा हैं. इसलिए मामले की जांच करना और अभियुक्तों को पुलिस हिरासत में रखना ज़रूरी है."
पुलिस ने दावा किया कि यलगार परिषद वैसे तो कबीर कला मंच की तरफ़ से आयोजित किया गया था जोकि पुणे का एक सांस्कृतिक समूह है, लेकिन इसका असली मक़सद शहरी इलाकों में माओवादी एजेंडे का विस्तार करना था. हीं, बचाव पक्ष के वकील रोहन नाहर ने पुणे पुलिस द्वारा अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेंशन एक्ट लगाने पर सवाल उठाए.
नाहर ने अदालत में कहा, "हाईकोर्ट के फ़ैसले ने भी साफ़ किया है कि किसी प्रतिबन्धित संस्था का सदस्य होना भर अपने आप में कोई अपराध नहीं है."
अरुण फ़रेरा ने अपने पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि जिन इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों की बात की जा रही है वो चार महीने पहले बरामद हुई थीं और वो तथाकथित चिट्ठियां लिखने वाले भी पहले ही गिरफ़्तार किए जा चुके हैं.
उन्होंने कहा, "जब हमारे घरों पर छापे पड़े तो हमने इसका विरोध नहीं किया बल्कि पुलिस और अधिकारियों का सहयोग किया. हमें पुलिस हिरासत में रखने की कोई ज़रूरत नहीं है."
गोंज़ाल्विस के वकील राहुल देशमुख ने कहा कि यलगार परिषद का आयोजन खुले आसमान के नीचे हुआ था और यह एक सार्वजनिक कार्यक्रम था. उन्होंने पूछा कि इस तरह के कार्यक्रम में कोई साज़िश कैसे रची जा सकती है.
देशमुख ने कहा, "पुलिस ने एक कहानी गढ़ी है. अगर चिट्ठियों में उनका नाम आया है तो इसका मतलब ये नहीं कि उन्होंने कोई अपराध किया है."
तक़रीबन ढाई घंटे चली बहस के बाद अदालत ने कार्यवाही थोड़ी देर के लिए रोकी और तभी सुप्रीम कोर्ट का आदेश आ गया कि कार्यकर्ताओं को हिरासत में नहीं लिया जा सकता.
दोबारा सुनवाई शुरू होने पर अदालत ने पुलिस को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए अभियुक्तों को घर में नज़रबंद करने को कहा.

Thursday, August 16, 2018

अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी के रिश्ते कैसे रहे

दिल्ली के कृष्णा मेनन मार्ग पर गाड़ियों का रेला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. आमतौर पर बहुत ही शांत रहने वाले इस इलाक़े में सुरक्षा एजेंसियों और ट्रैफ़िक पुलिस को ट्रैफ़िक संभालने में मुश्किल हो रही थी.
यूँ तो यहाँ से राष्ट्रपति भवन बमुश्किल दो किलोमीटर दूर होगा, लेकिन प्रोटोकाल तोड़कर ख़ुद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहुँचने वाले थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित करने के लिए.
साइरन की आवाज़ों से सड़क के दोनों ओर लगे पुराने बड़े पेड़ों से परिंदें अचानक उड़ने लगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का काफ़िला पहुँच गया और उनके बाद उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी भी वहाँ आ पहुँचे.
6-ए, कृष्णा मेनन मार्ग. तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का निवास. साल 1999 में जब वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो वह देश के नौवें ऐसे नेता थे जो गैर-कांग्रेसी होकर भी इस पद पर पहुँचे थे, और पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री, जिन्होंने पूरे पाँच साल तक सरकार चलाई.
इससे पहले किसी गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री को यह मौक़ा नहीं मिल पाया था और उनकी सरकार बहुत ही कम वक़्त के लिए चल पाई.
केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 24 दिसम्बर, 2014 को जब पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ वाजपेयी को भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान किया तो कोई ऐसा नेता या शख्सियत नहीं थी जिसने वाजपेयी को सम्मान देने का स्वागत नहीं किया हो. हर एक ने कहा कि वे इस सम्मान के लिए सबसे योग्य व्यक्ति हैं.अगस्त 2018 की शाम भी अचानक कृष्णा मेनन मार्ग पर गतिविधियाँ तेज़ हो गई थीं.
मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडु और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी समेत तमाम दिग्गज नेता यहाँ पहुँचने वाले थे.
पता वही- 6-ए, कृष्णा मेनन मार्ग. लेकिन अब वाजपेयी नहीं थे. 60 साल तक हिन्दुस्तान की राजनीति में लोगों का दिल जीतने वाले वाजपेयी ने शाम पाँच बजकर पाँच मिनट पर आख़िरी साँस ली तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा- "मेरे लिए अटल जी का जाना पिता तुल्य संरक्षक का साया उठने जैसा है. उन्होंनें मुझे संगठन और शासाल दोनों का महत्व समझाया, मेरे लिए उनका जाना एक ऐसी कमी है जो कभी भर नहीं पाएगी."
क़रीब 9 सप्ताह पहले 11 जून को जब वाजपेयी को एम्स में भर्ती कराया गया तब से प्रधानमंत्री चार बार उनसे मिलने गए.
तबीयत बिगड़ने की ख़बर के बाद 24 घंटों में दो बार मिलने गए. इससे पहले मोदी रोज़ाना फ़ोन पर एम्स के डॉक्टरों से वाजपेयी के सेहत से जुड़ी जानकारी लेते थे.
मोदी ने कहा कि यूँ तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वाजपेयी के बीच बीजेपी की नेताओं की पूरी एक पीढ़ी का फ़र्क है, लेकिन दोनों के बीचे रिश्तों की गर्माहट हमेशा ऐसी रही कि उसने इस दूरी का कभी अहसास ही नहीं होने दिया.
कहा जाता है कि बीजेपी में मोदी को लालकृष्ण आडवाणी ने तैयार किया. आडवाणी की रथयात्रा के वक़्त भी मोदी ही गुजरात में उसके संयोजक थे.
मोदी को गुजरात में मुख्यमंत्री बनवाने में भी आडवाणी की अहम भूमिका रही और फिर आडवाणी के संसदीय क्षेत्र गांधीनगर को भी मोदी ही देखते रहे.
लेकिन कम लोग ये जानते होंगे कि वाजपेयी ने ना केवल मोदी को गुजरात में मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला किया बल्कि उससे पहले जब मोदी राजनीति में हाशिये पर चल रहे थे, उस वक़्त साल 2000 में वाजपेयी ने ही उन्हें अमरीका से दिल्ली लौटने का आदेश दिया था. सितंबर, 2014 को खचाखच भरा हुआ न्यूयॉर्क का मैडिसाल स्कवायर गार्डन. प्रवासी भारतीयों, और ख़ासतौर से गुजरातियों का मेला सा लगा हुआ था.
केवल न्यूयॉर्क से ही नहीं, अमरीका के अलग-अलग हिस्सों से लोग हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देखने, मिलने और उनका भाषण सुनने के लिए पहुँचे हुए थे.
मैडिसाल स्कावयर में 'मोदी-मोदी' के नारे लग रहे थे. वीडियो स्क्रीन पर चल रही फ़िल्म में भारत के आगे बढ़ने की कहानी और बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनकी सरकार की तारीफ़ों का ज़िक्र भी था.
मोदी ने अपने भाषण में कई बार वाजपेयी का ज़िक्र किया.
उसी कार्यक्रम के बाद मेरी मुलाक़ात हुई एक सज्जन से जो गुजराती थे, बीजेपी समर्थक और नरेन्द्र मोदी के क़रीबी मित्रों में से एक.
उन्होंने बताया कि साल 2000 में जब वाजपेयी प्रधानमंत्री के तौर पर अमरीका दौरे पर आए थे तब उनका भी प्रवासी भारतीयों के साथ एक कार्यक्रम था.
उस वक़्त नरेन्द्र भाई राजनीतिक अज्ञातवास पर अमरीका में ही थे, लेकिन वो उस समारोह में शामिल नहीं थे.
गुजरात की राजनीति में केशूभाई पटेल के ख़िलाफ़ राजनीति करने के आरोप में उन्हें ना केवल किनारे कर दिया गया था बल्कि पार्टी से उन्हें गुजरात से बाहर जाने का आदेश मिला था.
मोदी के उस गुजराती मित्र ने जब वाजपेयी से मुलाक़ात में मोदी के वहाँ होने के बारे में बताया और पूछा कि क्या मोदी से वे मिलना चाहेंगे तो वाजपेयी ने हामी भर दी.
अगले दिन जब वाजपेयी और मोदी की मुलाक़ात हुई. मोदी से वाजपेयी ने कहा, "ऐसे भागने से काम नहीं चलेगा, कब तक यहाँ रहोगे? दिल्ली आओ.."
वाजपेयी से उस मुलाक़ात के कुछ दिनों बाद नरेन्द्र मोदी दिल्ली आ गए. उनका वनवास ख़त्म हो गया और मोदी एक नई राजनीतिक पारी खेलने के लिए तैयार हो गए.
और फिर अक्टूबर 2001 की सुबह. मौसम में अभी गर्माहट थी, लेकिन माहौल में एक स्याह सन्नाटा पसरा हुआ था.
चेहरे मानो एक दूसरे से सवाल पूछते हुए से, बिना किसी जवाब की उम्मीद के. दिल्ली के एक श्मशान गृह में एक चिता जल रही थी.
एक प्राइवेट चैनल के कैमरामैन गोपाल बिष्ट के अंतिम संस्कार में कुछ पत्रकार साथी और इक्का-दुक्का राजनेता शामिल थे.
एक नेता के मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी. प्रधानमंत्री निवास से फोन था. फ़ोन करने वाले ने पूछा, "कहाँ हैं?"
फ़ोन उठाने वाले ने जवाब दिया, "श्मशान में हूँ."
फ़ोन करने वाले ने कहा, "आकर मिलिए."

Monday, August 13, 2018

太阳能与电动汽车会改变现有能源格局吗?

自2015年12月《巴黎气候协定》通过以来,国际社会对抗气候变化的热情空前高涨。然而到底该如何从现有的化石燃料密集型生活模式转换到未来的低碳、甚至零碳模式,目前还没有定论。尽管如此,一些重大转变已经开始出现苗头。

关于太阳能光伏设备成本下降的讨论已经持续多年。目前来看,太阳能单位发电成本下降,不只是因为中国大规模增产导致全球市场供过于求,生产成本也的确在下降。

目前,太阳能光伏组件的成本不足每瓦0.5美元,而在美国安装全套的供电级太阳能光伏系统每瓦成本还不到1美元。此成就的取得,比美国能源部颁布的
Sunshot计划所提出的宏伟目标提前了3年。过去十年,有部分研究预计,至少要到21世纪末,太阳能系统的成本才会锐减至这一水平。行业创新的速度的确比我们大多数人想象的要快得多。

锂电池产业也是动作不断。锂电池问世于上世纪90年代,如今已在便携式电子装置市场独领风骚。此外,锂电池也是年销售量有望突破50万辆的电动汽车领域的标配能源。

特斯拉集团的“超级工厂” 已经投产,它是目前全球最大的锂电池生产厂。特斯拉的大幅增产和削减电池成本的愿景正在成为现实。正如我们在一系列声明中所看到的,电动汽车的成本有望在2020年代初期与汽油和柴油汽车一拼高下。

技术创新和成本下降对于抗击气候变化工作又会产生什么影响?近期内这一趋势对化石燃料行业又有怎样的冲击?由帝国理工大学()格兰瑟姆研究所( )与碳追踪(Carbon Tracker )共同开展的一份最新研究试图回答上述问题。该研究不仅力图搞清未来30年全球化石燃料市场的状况,同时也根据最近几年的行业与科研进展为我们模拟了未来可能的全球升温情景。

按照现有状况计算,到2100年全球平均气温会上升2.5摄氏度左右。而且,这还需要大多数国家积极诚信地兑现各自的2030年巴黎气候承诺,比如至少对低碳技术予以适度支持,以及对化石燃料燃烧产生的环境破坏成本进行一定的考虑等等。虽然这要比在什么都不做的情景下,2100年全球平均气温上升幅度可能突破4摄氏度的情况好得多,但是要想达成《巴黎气候协定》设定的全球温度上升幅度“低于2摄氏度”的长期目标,我们还需做出更多努力。

上述研究显示,由于电动汽车和太阳能光伏产业的崛起,石油和煤炭在道路交通和发电市场的需求将遭受重创。到2050年,太阳能光伏在全球发电市场中所占的比例将达到30%,而电动汽车则将占据7成的道路运输市场。所以说,到本世纪40年代,煤炭在电力产业或许将彻底丧失立足之地,而届时石油也将局限于公路货运、航空海运等领域。总而言之,上述两种化石燃料的全球需求将在本世纪20年代达到峰值。

从行业与宏观经济角度来看,这样的转变,尤其是石油需求的变化将会产生非常重要的影响。以本次研究发现为例,我们预计到本世纪20年代中期,电动汽车每天可减少200万桶石油需求,而这与最近石油价格暴跌导致的供需失衡数量基本相当。据我们估计,到本世纪中叶,电动汽车可减少十倍于此的石油需求。

当然了,这份研究带来的并不全是好消息。从积极的方面来看,未来新型低碳科技的市场渗透速度将继续加快,并在一定程度上减缓气候变化。我们将从“照常排放”的温度变化模式,转而进入一个升温较慢的模式。

然而,这一转变依旧无法让我们完成《巴黎气候协定》设定的目标。我们需要继续寻找和挖掘其他高性价比、易推广的科技来替代现有的化石燃料技术。就近期而言,如果化石燃料产业不能充分理解这一研究中提及的模式转变,并相应做出计划,那么这个行业必将遭受深远的、甚至颠覆性的影响。我们必须睁大双眼观测未来的发展大潮,为应对不可预测的难题做好准备。